शायरी – एक मुसाफिर अजनबी
मुसाफिर के रास्ते बदलते रहे मुसाफिर के रास्ते बदलते रहे , मुक़द्दर में चलना था चलते रहे मेरे रास्तों में उजाला रहा , दीये उसकी आँखों में जलते रहे कोई फूल सा हाथ कंधे पे था , मेरे पाओं शोलों पे चलते रहे सुना है उन्हें भी हवा लग गयी , हवाओं के जो रुख बदलते रहे वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया , मगर उम्र भर हाथ मलते रहे मोहब्बत , अदावत , वफ़ा , बेरुखी , किराये के घर थे बदलते रहे लिपट कर चिराग़ों से वो सो गए , जो फूलों पे करवट बदलते रहे.. मुसाफिर के साथ तू ने क्या किया इस राह -ऐ -उल्फत के मुसाफिर के साथ तू ने क्या किया कभी अपना लिया कभी ठुकरा दिया मेरी मोहब्बत तेरे नाम का मुहाल तो नहीं कभी बना लिया कभी गिरा दिया मैं तेरी किताब -ऐ -ज़िंदगी का वो हर्फ तो नहीं हूँ जिसे कभी लिख लिया कभी मिटा दिया मेरा साथ तेरे लिए बाईस-इ-रुस्वाई तू नहीं जिसे कभी दुनिया को बतला दिया कभी छुपा लिया आज कल लोगों का यही मशग़ला है “मुसाफिर” कभी हमें सोच लिया तो कभी भुला दिया.. ऐ मुसाफिर दुनिया के ऐ मुसाफिर मंज़िल तेरी कब्र है और जिस […]
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