रस्म-ए-उलफत सिखा गया कोई
दिल की दुनिया पे छा गया कोई
ता क़यामत किसी तरह ना बुझे
आग ऐसी लगा गया कोई
दिल की दुनिया उजाड़ सी क्यूँ है
क्या यहाँ से चला गया कोई
वक़्त-ए-रुख्ह्सत गले लगा कर “दाग”
हँसते हँसते रुला गया कोई
-दाग देहलवी
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रस्म-ए-उलफत सिखा गया कोई
दिल की दुनिया पे छा गया कोई
ता क़यामत किसी तरह ना बुझे
आग ऐसी लगा गया कोई
दिल की दुनिया उजाड़ सी क्यूँ है
क्या यहाँ से चला गया कोई
वक़्त-ए-रुख्ह्सत गले लगा कर “दाग”
हँसते हँसते रुला गया कोई
-दाग देहलवी