साथियों नमस्कार, हिंदी शार्ट स्टोरीज वेबसाइट समय समय पर आपके लिए सामाजिक कुरीतियों की कई कहानियां लेकर आती है| आज हम आपके लिए एक ऐसी कहानी ” हिंदी कहानी मृत्यु भोज | Mrityu Bhoj Hindi Story ” लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आप मृत्यु भोज जैसी सामाजिक बुराई को और भी करीब से समझ पाएँगे|
मृत्यु भोज भारतीय समाज में फैली वह बीमारी है जो धीरे-धीरे हमारे समाज को खोखला बनती जा रही है| वैसे तो भारतीय समाज में कई कुरुतियाँ फैली है लेकिन मृत्यु भोज आज के समय में सबसे ज्यादा चलन में है|
पढ़े चांदामेटा छिंदवाड़ा से नटेश्वर कमलेश द्वारा मृत्यु भोज पर लिखी एक मार्मिक कहानी
हिंदी कहानी मृत्यु भोज | Mrityu Bhoj Hindi Story
हम पर किसी को बिल्कुल नही दया नहीं आती खाने को पैसा नही बचा पास में बच्चे भूख से तड़प रहें हैं। ये लोग भी नही मान रहें बोलते हैं ये पूजा तो करवानी ही पड़ेगी।चलन है भाई ये तो। अब क्या करूँ बच्चों का पेट भरूँ या मरी पत्नी की आत्मा को शांति दूँ।
पूरी की पूरी पूंजी तो इलाज में लगा दी। खुद से ही बात करते हुए भोला कुछ बड़बड़ कर रहा था। ये देखो पंडित ने भी क्या सामान मंगवाया है। दाल,आटा,बच्चो के कपड़े ठीक हैं करूँगा कहीं से भी तुम ही लोग भर लो अपना पेट।
भोला की पत्नी लंबी बीमारी के गुजर गई 2 बच्चो को अपने पति के भरोसे छोड़ कर।लोगो ने कहा कि मृत्यु भोज करवाना जरूरी है। पंडित को दान दे कर ही आत्मा को शांति मिलेगी।
कल पंडित जी आ कर सामान की सूची पकड़ा गए। दिन भर मेहनत के बाद पूरे सामान की व्यवस्था की।शाम हुई भोला सर पर हाथ धरे बैठे था।तभी पंडित जी आ गए व सामान बुलाया।
घर में बच्चे खाने की चीज़ें देख कर ललायित हो रहे थे। पंडित जी ने कहा देखो भोला माँ को शांति तभी मिलेगी जब बच्चे पलते रहें।जो गुजर गए उनसे ज्यादा कर्तव्य तुम्हारा जो जीवित हैं उनके लिए है। ऐसे भोज का कोई लाभ नही जो ज़िंदा को तकलीफ पहुँचा कर मिले।
ये सभी चीज़े तुम्हारे बच्चो के लिए मंगवाई हैं।कल उनकी दशा देख चुका था मैं । किसी की सुने बिना उन्हें अच्छी परवरिश देना यही मेरी दक्षिणा होगी ओर यही तुम्हारी पत्नी की मुक्ति का तरीका भी। आशीर्वाद दे पंडित जी अपनी तरफ से सिर्फ पूजा कर चले गए।
हिंदी कहानी मृत्यु भोज | Mrityu Bhoj Hindi Story
नटेश्वर कमलेश
चांदामेटा छिंदवाड़ा
आखिर क्यों नहीं करना चाहिए मृत्युभोज
महाभारत की एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण श्रीमद भागवद गीता में कहते हैं, की “आत्मा अजर अमर है, आत्मा का नाश नहीं हो सकता…आत्मा केवल युगों युगों तक शरीर बदलती रहती है”
दशकों पहले किसी भी इन्सान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए केवल ब्राम्हणों को भोजन करवाया जाता था| लेकिन समय के साथ-साथ समाज के साथ जुडाव और लोक-लज्जा के कारण लोग बड़े पैमाने पर म्रत्यु भोज का आयोजन करते हैं| जिसमें दूर-दूर से रिश्तेदारों, परिचितों को बुलाया जाता है|
भारतीय समाज में किसी भी इन्सान के देह त्याग करने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए कई तरह के संस्कार किये जाते हैं| हिन्दू सभ्यता में किये जाने वाले सोलह संस्कारों में सबसे प्रथम संस्कार है “गर्भाधान” और सबसे आखिरी संस्कार है “अंतिम संस्कार” जिसे पुराणों में सबसे अहम् संस्कार माना गया है|
लेकिन जब पुरानों में भी 17 वे संस्कार के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है, जब 17 वा संस्कार बना ही नहीं है तो कलयुग में मृत्यु के बाद यह मृत्युभोज का संस्कार कहाँ से आया गया|
क्या कथा है महाभारत की
महाभारत की एक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के समय महाभारत के युद्ध को रोकने के लिए श्री कृष्ण दुर्योधन के घर गए और महाभारत के युद्ध को रोकने का आग्रह करने लगे| लेकिन दुर्योधन ने श्री कृष्ण के आग्रह को ठुकराते हुए महाभारत का युद्ध किसी भी अवस्था में लड़ने का फैसला सुना दिया|
श्री कृष्ण को दुर्योधन के इस तरह अपमान करने और भविष्य में महाभारत से होने वाली हानि को न समझने के कारण बहुत कष्ट हुआ और वे दुर्योधन के महल से जाने लगे|
तभी दुर्योधन ने श्री कृष्ण को भोजन करने का आग्रह किया| दुर्योधन के भोजन के आग्रह को सुनकर श्री कृष्ण ने दुर्योधन को कहा की, “सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’ अर्थात है दुर्योधन जब खिलने वाले का मन प्रसन्न हो और खाने वाले का मन प्रसन्न हो तभी कहीं भी भोजन करना चाहिए
लेकिन जब भोजन करवाने वाले के मन में किसी बात को लेकर पीड़ा हो, किसी हानि को लेकर कष्ट हो या मन दुखी हो ऐसी परिस्थिथि में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए”
महाभारत के समय श्री कृष्ण द्वारा कहे गए इन कथनों को जब आज की परिस्थिथि में “मृत्यु भोज” से देखा जाए तो परिवार में किसी की भी मृत्यु होने के बाद परिवारजनों के मन में अथाह पीड़ा और वेदना होती है|
ऐसी स्थिथि में कोई भी प्रसन्नता से भोज नहीं करा सकता और कोई भी प्रसन्नचित अवस्था में भोजन नहीं कर सकता| इसीलिए कभी भी मृत्यु भोज में सम्मिलित नहीं होना चाहिए|