उन्होंने वक़्त समझकर गुज़ार दिया हमको..
और हम.. उनको ज़िन्दगी समझकर आज भी जी रहे हैं..!!
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वो इतना रोई मेरी मौत पर मुझे जगाने के लिए..
मैं मरता ही क्यूँ अगर वो थोडा रो देती मुझे पाने के लिए..!!
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खुद भी रोता है, मुझे भी रुला के जाता है..
ये बारिश का मौसम, उसकी याद दिला के जाता हैं।
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निगाहों से भी चोट लगती है.. जनाब..
जब कोई देख कर भी अन्देखा कर देता है..!!
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वो दुआएं काश मैने दीवारों से मांगी होती,
ऐ खुदा.. सुना है कि उनके तो कान होते है!!
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इश्क है या इबादत.. अब कुछ समझ नहीं आता,
एक खुबसूरत ख्याल हो तुम जो दिल से नहीं जाता.
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फ़िक्र तो तेरी आज भी है..
बस .. जिक्र का हक नही रहा।
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तुमसे ऐसा भी क्या रिश्ता हे?
दर्द कोई भी हो.. याद तेरी ही आती हे।
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काग़ज़ पे तो अदालत चलती है..
हमने तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर किये।
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एम्बुलेंस सा हो गया है ये जिस्म,
सारा दिन घायल दिल को लिये फिरता है।
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हम तो बिछडे थे तुमको अपना अहसास दिलाने के लिए,
मगर तुमने तो मेरे बिना जीना ही सिख लिया।
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ताला लगा दिया दिल को.. अब तेरे बिन किसी का अरमान नहीं..
बंद होकर फिर खुल जाए, ये कोई दुकान नहीं।
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जुनून, हौसला, और पागलपन आज भी वही है
मैंने जीने का तरीका बदला है तेवर नहीं..!!
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हम ने भी कह दिया उनसे की बहुत हो गयी जंग बस..
बस ए मोहब्बत तुझे फ़तेह मुबारक मेरी शिक्स्त हुई।
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पहले रिम-झिम फिर बरसात और अचानक कडी धूप,
मोहब्बत ओर अगस्त की फितरत एक सी है..!!
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बारिश और महोबत दोनों ही यादगार होते हे,
बारिश में जिस्म भीगता हैं और मोहब्बत मैं आँखे.
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कल क्या खूब इश्क़ से मैने बदला लिया,
कागज़ पर लिखा इश्क़ और उसे ज़ला दिया..!!
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ये ही एक फर्क है तेरे और मेरे शहर की बारिश में
तेरे यहाँ ‘जाम’ लगता है, मेरे यहाँ ‘जाम’ लगते हैं..!!
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हाल तो पूछ लू तेरा पर डरता हूँ आवाज़ से तेरी,
ज़ब ज़ब सुनी है कमबख्त मोहब्बत ही हुई है।
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आंसू निकल पडे ख्वाब मे उसको दूर जाते देखकर..!!
आँख खुली तो एहसास हुआ इश्क सोते हुए भी रुलाता है..!!
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नही रहता कोई शख़्स अधूरा, किसी के भी बिना,
वक़्त गुज़र ही जाता है, कुछ खोकर भी, कुछ पाकर भी…
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आज खुद को इतना तन्हा महसूस किया मैंने,
लगा जैसे कोई दफना के चला गया हो
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हिरासत में हूं मैं तेरी हसीन बाहों की.
बस दुआ है कोई ज़मानत न करा दे हमारी.!!
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रूह से तुम्हे महसूस करे,लफ्जो में तुम्हारे खो जाये,
इश्क़ का मौसम है,उफ्फ कहो तो हम तुम्हारे हो जाये ।
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अंदाजा नही है किसी को ” जख्म का ” !!
बस मिट्टी हटाके नमक छिड़कने आ जाते है !!
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इश्क़ की नौकरी मिलती नहीं खैरात में,
दिल में फकीरी और फितरत सुफियानी चाहिए।।
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भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब
कि जैसे तू ने हथेली पे मेरी गाल रख्खा है..
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नजरें शर्माजाती है मग़र दीदार करना नही छोड़ती
कैसे बताये उनके सामने हमारी हालात कैसे हो जाती है !
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शायद गुनाह है जिंदगी जीना
इसलिए सजाये हर मोड़ पर मिल जाती है
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सुनो ! महफूज कर लो न हमें खुद में..
के बिन तेरे, बेवजह बिखर रहे हैं हम..
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गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हें यूं ही मुसाफिरों की तरह…
यादें वहीं खड़ी रह जाती हैं रूके रास्तों की तरह…!!!
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मोहब्बत तो खामोशी से हो जाती है जनाब
यह तो ख्वाहिशें है जो शोर मचा देती हैं।।
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मैं नही लिख पाऊंगा कुछ,
शब्द कम, इश्क़ ज्यादा है..
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लाख अदाओं की जरूरत ही क्या है
जब हम फिदा ही तुम्हारी सादगी पर है।
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प्यास अगर शराब की होती… तो ना आता तेरे मैखाने मे….
ये जो तेरी नज़रो का जाम है कम्बख्त कही और मिलता ही नही…!!
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