जरूरतें भी जरूरी हैं, जीने के लिये लेकिन,
तुझसे जरूरी तो, जिदगी भी नही।
खामोशी को चुना है अब बाकी के सफर के लिए,
अब अल्फाजो को जाया करना, हमे अच्छा नहीं लगता।
अहमियत दी तो कोहिनूर खुद को मानने लगे,
कांच के टुकड़े भी क्या खूब वहेम पालने लगे।
मुस्कराहट एक कमाल की पहेली है,
जितना बताती है उससे कहीं ज्यादा छुपाती है।
सितम ये है कि हमारी सफों में शामिल हैं,
चराग बुझते ही खेमा बदलने वाले लोग।
जब तक था दम में दम न दबे आसमाँ से हम,
जब दम निकल गया तो ज़मीं ने दबा लिया।
निकल आते हैं आँसू गर जरा सी चूक हो जाये,
किसी की आँख में काजल लगाना खेल थोड़े ही है।
मिले जो मुफ्त में उस चीज की कीमत नहीं होती,
हुई है कद्र हर इक साँस की जब वक़्त आया है।
उससे खफा होकर भी देखेंगे एक दिन,
कि उसके मनाने का अंदाज़ कैसा है।
क्यूँ हम को सुनाते हो जहन्नुम के फ़साने,
इस दौर में जीने की सजा कम तो नहीं है।