Poem on Womens | महिलाओं के लिए कविता

साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए “Poem on Womens | महिलाओं के लिए कविता” लेकर आएं हैं जिन्हें पढ़कर आपको महिलाओं और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक प्रोत्साहन मिलेगा| आप इन कविताओं को किसी भी सभा या उत्सव में पढ़कर सुना सकते हैं|

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Poem on Womens | महिलाओं के लिए कविता

मेरी उम्र पूछने वाले,
मेरी तकदीर का लिखा कैसे जान जाते हो…
अठारह कहूँ तो संभलकर रहना बहक जाऊँगी,
यह कैसे कह जाते हो!!
और इककतीस कहूँ तो शादी नहीं होगी,
इसका इतना दुख तुम कयो मनाते हो…
मेरी उम्र पूछने वाले,
मेरी तकदीर का लिखा कैसे जान जाते हो!!
अरे मेरी उम्र पर नजर रखने वाले पहले अपनी तो जी ले,
महज कुछ पलों के राही थोड़ी सी तो सीख ले ले…
तुझे एहसास भी है इस उम्र के खेल में मैंने कितना कुछ हारा है,
मेरी उम्र पूछने वाले मेरी तकदीर लिखा कैसे जान जाते हो ॥
खुद के लिए जीना चाहती हूँ |

Poem on Women’s Empowerment

शौर-शराबे और इस हलचल से दूर,
शांत जीवन जीना चाहती हूँ…
जीती रही अब तक सबके लिए,
कुछ पल अब खुद के लिए जीना चाहती हूँ!!

उन्मुक्त सरिता की तरह मेरा मन,
सिमटता रहा जीवन-कूप के भीतर,
फैला था चरों और मरुस्थल,
धरा टेल फिर भी बहता रहा निर्झर!!

संघर्ष करते करते,
शायद अब मायने ही खो गए…
समंदर में उतारते,
लहरों के भंवर में खो गए!!

वसुंधरा सी सहनशीलता,
है मुझमें सागर सी गहराई,
संसार चक्र की धुरी बनी,
ममता ने जो ली अंगडाई!!

हूँ आदि, मध्य और अंत भी में ही,
जीवन का मूल और सृष्टिकर्ता भी में ही!!

स्त्री शक्ति | Poem about Women’s Strength

कभी किसी स्त्री को कम मत समझना,
ब्रह्मा विष्णु शिव जिसके सामने शीश झुकाए,
वह जगदंबा कहलाए!!

हर स्त्री में जगदंबा का वास है,
हर स्त्री में कुछ ना कुछ खास है…
तीनो लोक जिस के गुण गाए,
वह जगदंबा कहलाए!!

जिसके होने से यह जीवन चक्र चलता जाए,
वह एक माँ कहलाए…
जो हर वक्त पुरुष को उसकी रक्षा का एहसास दिलाए,
वह बहन कहलाए !!…

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Are oh Baadal – Poetry By Ritu Agarwal

अरे ओ बादल ….

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कई दिनों से देख रही हूँ..
तुमनें अपना रुख़ कुछ बदल सा लिया है ..
इस तरफ आते तो हो,
पर मिलकर नहीं जाते ..
सामने से ऐसे निकल जाते हो,
जैसे हमसे कोई वास्ता ही नहीं ..

लगता है .. अब कोई और तुम्हें ज्यादा शिद्दत से बुलाता है ..
तभी तो.. अब यहाँ रुकते नहीं ..
दो पल के लिए ही सही,
अपने प्यार से मुझे भिगाते नहीं

जानती हूँ .. बहुत व्यस्त हो, मुसाफिर हो..
पूरे देश दुनिया का भ्रमण तुम्हें करना है ..
और तुम्हारे चाहने वालों की भी तो कमी नहीं ..
पर अगर, थोड़ा यहाँ भी रुक जाते,
मुझको भी गले लगा जाते,
तो अच्छा लगता ..

कभी लगता है,
तुम्हारी नियत पर, तुम्हारे प्यार पर,
शक़ ना करूँ ..

अगर तुम यूँ जा रहे हो,
तो ज़रूर.. कुछ ज़रूरी होगा..
कोई अपने ग़म को, अपनी ख़ुशी को,
तुमसे बाँटना चाहता होगा..
या फिर..
कोई अपने आँसुओं को,
तो कोई अपने बदन से लिपटी मिट्टी को,
तुमसे लिपट कर, धो देना चाहता होगा..

चलो कोई नहीं ..
इंतज़ार कर रही हूँ..
कभी तो फिर से आओगे..

अरे ओ बादल ..

आज सामने से निकल गये तो क्या
शायद कल रुक जाओगे..

अरे ओ बादल..
मुझे पूरी उम्मीद है,
तुम कल फिर से आओगे..

Written & Recited By – Ritu Agarwal

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1990 wala pyar | 90’s Love Shayari Poem

1990 wala pyar | 90’s Love Shayari Poem

अपना इश्क़ 1990 वाला चाहता हूँ,
टेक्स्ट, कॉल से दूर,
ख़तों पर रहना चाहता हूँ,
ये बाबू शोना छोड़के,
उसे प्रेमिका कहना चाहता हूँ,
जब मिले हम अचानक से,
तो उसकी खुशी देखना चाहता हूँ ,
जब आये सुखाने कपड़े छत पर,
तो चोरी चोरी मिलना चाहता हूँ,
जो पापा और भाई के आने से डरती हो,
ऐसी मेहबूबा चाहता हूँ,
हॉं, मैं आज भी मोहब्बत
पुराने जमाने वाली चाहता हूँ ।

~ नितिन राजपूत…

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मैंने कोरोना का रोना देखा है

मैंने कोरोना का रोना देखा है!
और उम्मीदों का खोना देखा है!!

लाचार मजदूरों को रोते देखा है!
गिरते पड़ते चलते और सोते देखा है!

पिता को सूनी आंखों से तड़पते देखा है!!
तो मां की गोद में बच्चे को मरते देखा है!

गरीबों का खुलेआम रोष देखा है!!
तो मध्यमवर्ग का मौन आक्रोश देखा है!

पीएम केयर के लिए भीख की शैली देखी है!
तो उसी पैसे से वर्चुअल रैली देखी है!!

गरीबों को अस्पतालों में लुटते देखा है! !
तो निर्दोषों को बेवजह पिटते देखा है!

अल्लाह भगवान की दुकानों का बंद भी होना देखा है!
तो रोना रोती सरकारों का अंत भी होना देखा है!!

~ Dr. Anita…

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सूरज पर कुछ कवितायेँ | Poem on Sun

Poem on Sun

बचपन में हमें हमारे बड़े चंदा मामा की कविता, कहानी बताया करते थे और हम भी उसे बड़े लगन से सुनते थे लेकिन कभी किसी ने बचपन में सूरज चाचू की कहानियाँ या कविता नहीं सुनी होंगी। सूरज की महानता उतनीही हैं जीतनी चंदा मामा की आज उन्ही की महानता दर्शाने वाली कुछ कविताये – Poem on Sun हम यहाँ पढेंगे।

Poem on Sun

सूरज पर कुछ कवितायेँ – Poem on Sun

Poem on Sun 1

“सूरज”

सबसे तेज वाला
आग का एक बड़ा गोला है
इससे जन जीवन है
वरना धरती बर्फ का गोला है
इस से मिलती है ऊर्जा
इस से मिलती है प्रेरणा
इसको मानते हैं देवता
इसकी होती है अर्चना
हमारे शौर मंडल का सबसे बड़ा तारा
हाँ, ये तो है सूरज हमारा

~ अनुष्का सूरी

Poem on Sun 2

“रोज सुबह को सूरज आकर”

रोज सुबह को सूरज आकर,
सबको सदा जगाता हैं,
श्याम होई लाली फैलाकर,
अपने घर को ज्याता हैं,
दिनभर ख़ुद को जला जलाकर
ये उजाला फैलता हैं,
उसका जीना ही जीना हैं,
जो काम सभी के आता हैं।

Poem on Sun 3

“दिनकर”

दहक उठी ये धरा, प्रगट हुए जब दिनकर
कड़ी धुप ने बजाया बिगुल, झुलस गया कण कण
बरस रहे हो शोले जैसे, अग्निपिंड सा होता प्रतीत,
बेईन्तहा जुल्म कर रहो जैसे, सूरज की ये बेरहमी,
दहक उठी ये धरा, प्रगट हुए जब दिनकर

Poem on Sun 4

“सूरज आया”

सूरज आया,
सुनहरी प्रभात लाया
आसमान में बिखेर कर अपनी किरणे,
एक नए दिन का परचम लहरा रहा है
फूल खिल रहे हैं बागों में,
हो रहा है नए जीवन का आगाज
पंछी उड़ रहे हैं गगन में,
भिन्न-भिन्न आवाजों से नया गीत सुना रहे है
मीठी मीठी ठंडी ठंडी हवा चल रही है,
मंद मंद मुस्का के फसलें लहरा रही है
कल कल करती नदियाँ बह रही है,
झरने भी अनोखी राग सुना रहे है
धरा भी खुश होकर घूम रही है,
हर एक कोना रोशन हो रहा है
हो रहा है तेरा हर तरफ गुणगान,
कोई तुझे नमन करता तो कोई करता पूजा
संध्या होते छिप गया कही दूर गगन में,
छोड़ अपनी निशानी लाली आसमा में

~ नरेंद्र वर्मा

Poem on Sun 5

“सूरज निकला हुआ सवेरा”

सूरज निकला हुआ सवेरा,
देखो बच्चों मिट गया अँधेरा।
चिड़ियों ने फिर से छोड़ा बसेरा,
जब आया थंडी हवा का फेरा।
इतना सुंदर समय ना खोओं,
जागों बच्चों अब मत सोओं…

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“तरसती निगाहे” हिंदी बेस्ट पोएम

Written by:-

Anil Kulkarni 

hindi poem

तरसती निगाहे मंजिल को ढूंढती है।
छलनामय (धोखा) जग से डरती है।
डरती है, मोह, माया बंधन से।
भवितव्य (भविष्य) में क्या है?
अब यह सोचती है।

न समझ सकी इस जग को।
समझ न सकी पामर दुनिया को।
आभा(दिया) के बुझने पर तिमिर (अंधेरा)
हो जाती।
खुशियां आने पर दुख ज़रूर आती।

कुछ कलियां खिल न पाए यहां।
यौवन क्षण भर के लिए रूके यहां।
दुरूह (मुस्किल) है, इस  चक्रव्यूह से निकलना।
जिसमे है, सुख-दुख का झरना।

लोगों से न रूठी, रूठी अपने अदृष्ट पर।
जीवन में हंसते- हंसाते रही, पर माना
मुझे अपना पल -भर।

तपोमय है, जीवन यहां।
जिसकी न होती अंत कभी।
अंत  होता सिर्फ शरीर का यहां।
रह  जाते सिर्फ यादें यहां।…

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