“असमंजस” स्कूल लव स्टोरी इन हिंदी
-निधि जैन
. लखनऊ शहर के मशहूर सिनेमा घर मेफेयर के सामने वाला चौराहा उसके ही नाम से प्रसिद्ध था। मेरी स्कूटी अभी उस चौराहे पर पहुँची ही थी कि पुलिस वाले ने हाथ दिखा कर ट्रैफिक रोक दिया। किसी गणमान्य व्यक्ति का काफिला गुजरने वाला था। मैंने घड़ी पर नजर डाली, दोपहर का पौन बज रहा था। गर्म हवा के थपेड़े चेहरे को झुलसा रहे थे। मई का महीना, उस पर उत्तर-प्रदेश की लू वाली गर्मी। पता नहीं क्या सोच कर मैं भरी गर्मी में स्कूटी उठा कर चल दी। अच्छा खासा प्रदीप ए.सी गाड़ी भेज रहा था। उसमें चली जाती तो क्या बिगड़ जाता, पर हर जगह मेरा स्वाभिमान जो आड़े आ जाता है। पता नहीं अब यहाँ कितनी देर खड़ा रहना पड़ेगा। हर गुजरते पल के साथ मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। इस बेचैनी का कारण गर्मी थी या चौराहे पर खड़े हो कर इंतजार करना या फिर घर से निकलते समय आयुष का फोन। आयुष मेरा पड़ोसी और मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। आज पता नहीं फोन पर कुछ अजीब सी बातें कर रहा था। पुरानी बातें दिल से निकल कर दिमाग पर दस्तक देने लगी थीं।
. उस समय मेरी उम्र करीब पाँच साल थी। एक दिन मैं स्कूल से लौटी तो पापा-मम्मी अपने कमरे में उदास बैठे थे। मैंने पहले कभी उन्हें ऐसे नहीं देखा था। पापा उठ कर कमरे के बाहर चले गये। मैं रोज की तरह माँ को अपनी दिन-भर की कहानियाँ सुनाने लगी। माँ एकदम शांत भाव से मेरी बातें सुनती रही। अचानक उसने मुझे गले से लगा लिया और फफक-फफक कर रो पड़ी। मैंने घबरा कर पूछा, “माँ, रो क्यों रही हो? तुम ही तो कहती हो कि अच्छे बच्चे रोते नहीं।” तभी पापा कमरे में दाखिल हुए, उन्होंने मुझे आया के साथ कमरे के बाहर भेज दिया। थोड़ी देर बाद माँ-पापा मुसकुराते हुए बाहर आये और ऐसा लगा जैसे सब कुछ सामान्य हो गया।
. सच तो यह था कि कुछ भी सामान्य नहीं था। पापा, माँ को ले कर अस्पताल जाने लगे और मैं स्कूल से आ कर पड़ोस वाली आन्टी के घर। आन्टी का व्यवहार मेरे साथ बहुत ही सख्त और रूखा था। वह न तो मुझसे कोई बात करती और न ही कुछ खाने को देती। तीन-चार दिन बाद ही उन्होंने पापा से कह दिया, “आप अपना कुछ और इंतजाम कर लें। मुझे बच्चे की वजह से बहुत बंधन हो जाता है।” पापा ने मेरी स्कूल …