किसान, जिसे हमारे भारतीय समाज में अन्नदाता भी कहा गया है आज उस स्थान पर है जहाँ वह कर्जमाफी और अपनी उपज के सही मूल्य के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहा है| एक ऐसे ही किसान के दिल से निकली बातों को हमने एक कविता ” Poem on Kisan Diwas | किसान दिवस पर कविता ” का रुप दिया है आशा है आप सबको पसंद आएगी|
साथियों इस कविता को हमें भेजा है हमारी मण्डली के सदस्य विजय सिदार ने| आपको हमारा यह संकलन कैसा लगता है हमें कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं|
Poem on Kisan Diwas | किसान दिवस पर कविता
“हाँ मैं किसान का बेटा हूँ”
खेतों के मिट्टी में खेल कर बड़ा हुआ हूँ,
गीली मिट्टी में जज्बात को समेट कर बड़ा हुआ हूँ!
होठों पर फरेबी दुनिया की झूठी मुस्कान नहीं,
मैं बछड़ों से खेल कर मुस्कुराया हूँ..
हाँ मैं किसान का बेटा हूँ!!
बारिश के पानी से कम, ज्यादा शरीर की
पसीने से धरा को सींचता हूँ…
बमुश्किल घर की जरूरतें पूरी कर पाता हूँ,
फिर भी हर हाल में जरूरतें पूरी करता हूं…
हाँ मैं किसान का बेटा हूँ!!
लागत से ज्यादा खर्चे हैं मेरे जीने की,
और साहब संसद में बैठ कर…
मेरे पसीने की कीमत तय करते हैं!
जब कर्ज़ बढ़ जाता है,
तब हाथ में फंदा आ जाता है…
साहब करते राजनीति मेरे मौत से,
और फिर सब भूल जाते हैं शौक से…
पर मैं कभी नहीं भूलता हूं,
हाँ मैं किसान का बेटा हूँ!!
मेरी फसल के दाने – दाने पर,
कोई आँख गड़ाए बैठा होता है!
मेरी मजबूरी का फायदा उठाकर,
कोई फसल ले जाता है कम दामों पर…
इतना सब कुछ तो सहता हूँ,
हाँ मैं किसान का बेटा हूँ!!
Poem on Kisan Diwas | किसान दिवस पर कविता
विजय सिदार