जीवन रूपी सदी है मां
कलकल बहती नदी है मां
जीवन रूपी सदी है मां
पोंछती है आंसू छुपकर
पर कुछ नहीं कहती है मां
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’…
Just another Hindi Shayari site
कलकल बहती नदी है मां
जीवन रूपी सदी है मां
पोंछती है आंसू छुपकर
पर कुछ नहीं कहती है मां
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’…
गुलाब की तरह हो तुम मां! मेरे मन मंदिर में महकती हो।
ज़िंदगी का सार हो तुम मां! तुम्हीं दिल से मुझे समझती हो।
~ जितेंद्र मिश्र ‘बरसाने’…
जब कभी मेरा मन उदास होता है, तब तेरा चेहरा आसपास होता है।
तब मिलता है सुकून और विश्वास, मां! तेरे आशीर्वाद का अहसास होता है।
~ जितेंद्र मिश्र ‘बरसाने’…